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श्रीमद् भागवतम
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अध्याय 3: माया से मुक्ति
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श्लोक 1
श्लोक
11.3.1
श्रीराजोवाच
परस्य विष्णोरीशस्य मायिनामपि मोहिनीम् ।
मायां वेदितुमिच्छामो भगवन्तो ब्रुवन्तु न: ॥ १ ॥
अनुवाद
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राजा निमि बोले: अब हम भगवान् विष्णु की उस माया के विषय में जानना चाहते हैं जो बड़े-बड़े योगियों को भी मोह लेती है। हे प्रभुओ, कृपा करके हमें इस विषय में बताइए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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