श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 29: भक्ति-योग  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  11.29.7 
 
 
श्रीशुक उवाच
इत्युद्धवेनात्यनुरक्तचेतसा
पृष्टो जगत्क्रीडनक: स्वशक्तिभि: ।
गृहीतमूर्तित्रय ईश्वरेश्वरो
जगाद सप्रेममनोहरस्मित: ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी ने कहा: अत्यन्त स्नेहिल उद्धव के इस प्रकार प्रश्न करने पर, समस्त ईश्वरों के परम नियन्ता भगवान श्री कृष्ण, जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने खिलौने की तरह मानते हैं और ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों रूपों को धारण करते हैं, अपनी सर्व-आकर्षक मुस्कुराहट दिखाते हुए उत्तर देने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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