प्रायश: पुण्डरीकाक्ष युञ्जन्ते योगिनो मन: ।
विषीदन्त्यसमाधानान्मनोनिग्रहकर्शिता: ॥ २ ॥
अनुवाद
हे कमल नयन वाले भगवान, सामान्यतः वे योगीजन जो मन को स्थिर करने का प्रयास करते हैं, समाधि की दशा पूर्ण करने में अपनी असमर्थता के कारण निराशा का अनुभव करते हैं। इस प्रकार वे मन को वश में करने के प्रयास में थक जाते हैं।