श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 28: ज्ञान-योग  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  11.28.31 
 
 
तिष्ठन्तमासीनमुत व्रजन्तं
शयानमुक्षन्तमदन्तमन्नम् ।
स्वभावमन्यत् किमपीहमान-
मात्मानमात्मस्थमतिर्न वेद ॥ ३१ ॥
 
अनुवाद
 
  बुद्धिमान व्यक्ति जिसकी चेतना आत्मा में स्थित होती है, अपनी शरीर की क्रियाओं पर ध्यान तक नहीं दे पाता है। वह खड़े होने, बैठने, चलने, लेटने, मलमूत्र त्यागने, खाना खाने या शरीर से जुड़े अन्य कार्य करते हुए भी समझता है कि शरीर अपने स्वभाव के अनुसार काम करता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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