श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 28: ज्ञान-योग  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  11.28.10 
 
 
श्रीउद्धव उवाच
नैवात्मनो न देहस्य संसृतिर्द्रष्टृद‍ृश्ययो: ।
अनात्मस्वद‍ृशोरीश कस्य स्यादुपलभ्यते ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  श्री उद्धव ने कहा: हे प्रभु, इस भौतिक जगत का अनुभव न तो आत्मा का हो सकता है जो कि सबको देखती है और न ही शरीर का जो कि देखा जाता है। एक ओर आत्मा में स्वाभाविक रूप से पूर्ण ज्ञान समाहित है और दूसरी ओर भौतिक शरीर कोई चेतन प्राणी नहीं है। तो फिर इस भौतिक जगत का अनुभव किससे संबंधित है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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