श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 27: देवपूजा विषयक श्रीकृष्ण के आदेश  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  11.27.9 
 
 
अर्चायां स्थण्डिलेऽग्नौ वा सूर्ये वाप्सु हृदि द्विज: ।
द्रव्येण भक्तियुक्तोऽर्चेत् स्वगुरुं माममायया ॥ ९ ॥
 
अनुवाद
 
  द्विज को चाहिए कि वह अपने आराध्य देव, मुझ परमात्मा को बिना पाखंड के, भक्ति और प्रेम के साथ उपयुक्त सामग्री चढ़ाकर पूजे। उसकी पूजा मेरे अर्चाविग्रह, पृथ्वी, अग्नि, सूर्य, जल या अपने हृदय में प्रकट होने वाले मेरे स्वरूप के लिए की जा सकती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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