श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 27: देवपूजा विषयक श्रीकृष्ण के आदेश  »  श्लोक 54
 
 
श्लोक  11.27.54 
 
 
य: स्वदत्तां परैर्दत्तां हरेत सुरविप्रयो: ।
वृत्तिं स जायते विड्भुग् वर्षाणामयुतायुतम् ॥ ५४ ॥
 
अनुवाद
 
  जो कोई भी देवताओं या ब्राह्मणों की सम्पत्ति चुराता है, चाहे वह पहले उसी व्यक्ति द्वारा दी गई हो या किसी अन्य के द्वारा, उसे एक करोड़ वर्षों तक मल सम्बन्धी कीट के रूप में रहना पड़ता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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