भक्त उस परमात्मा का ध्यान करते हैं जिसकी उपस्थिति से भक्त का शरीर उसकी अनुभूति के अनुसार अतिभारित हो जाता है। इस तरह भक्त अपनी पूरी शक्ति से भगवान की पूजा करता है और उनमें पूरी तरह से लीन हो जाता है। भगवान की मूर्ति के विभिन्न अंगों का स्पर्श करके और उचित मंत्रों का जाप करके भक्त को परमात्मा को मूर्ति के रूप में आने के लिए आमंत्रित करना चाहिए और फिर मेरी पूजा करनी चाहिए।