श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 27: देवपूजा विषयक श्रीकृष्ण के आदेश  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  11.27.18 
 
 
भूर्यप्यभक्तोपाहृतं न मे तोषाय कल्पते ।
गन्धो धूप: सुमनसो दीपोऽन्नाद्यं च किं पुन: ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  भक्तों के प्रेम से चढ़ाया हुआ तनिक-सा भेंट भी मुझे प्रसन्न कर देता है, भले ही वह तुच्छ से तुच्छ क्यों न हो। किंतु अभक्तों द्वारा प्रदत्त बड़ी से बड़ी ऐश्वर्यपूर्ण भेंट भी मुझे तुष्ट नहीं कर पाती। सुगंधित तेल, अगुरु, फूल तथा स्वादिष्ट भोजन की उत्तम भेंट प्रेमपूर्वक चढ़ाई जाती हैं, तो मैं निश्चय ही सर्वाधिक प्रसन्न होता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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