द्रव्यै: प्रसिद्धैर्मद्याग: प्रतिमादिष्वमायिन: ।
भक्तस्य च यथालब्धैर्हृदि भावेन चैव हि ॥ १५ ॥
अनुवाद
मनुष्य को उत्तम से उत्तम साधनों से मेरी अर्चाविग्रह रूप में पूजा करनी चाहिए। परंतु जो भक्त भौतिक इच्छाओं से पूरी तरह मुक्त होता है वह मेरी पूजा किसी भी चीज़ से कर सकता है जो उसे मिल जाए, यहाँ तक कि वह अपने हृदय में मानसिक साज-सामग्री से भी मेरी पूजा कर सकता है।