चलाचलेति द्विविधा प्रतिष्ठा जीवमन्दिरम् ।
उद्वासावाहने न स्त: स्थिरायामुद्धवार्चने ॥ १३ ॥
अनुवाद
सभी जीवों के रक्षक भगवान् का विग्रह दो प्रकार से स्थापित किया जा सकता है—अस्थायी या स्थायी। किंतु एक बार स्थायी विग्रह का आह्वान कर लेने पर, हे उद्धव, उसे कभी भी विसर्जित नहीं किया जा सकता।