श्रीउद्धव उवाच
क्रियायोगं समाचक्ष्व भवदाराधनं प्रभो ।
यस्मात्त्वां ये यथार्चन्ति सात्वता: सात्वतर्षभ ॥ १ ॥
अनुवाद
श्री उद्धव ने कहा: प्रभु जी, हे भक्तों के स्वामी, आप कृपा करके मुझे अपनी मूर्ति रूप में पूजा करने का विधान बताइये। मूर्ति की पूजा करने वाले भक्तों में कौन-कौन से गुण होते हैं? ऐसी पूजा किस आधार पर की जाती है? और पूजा करने की विशेष विधि क्या है?