श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 26: ऐल-गीत  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  11.26.22 
 
 
अथापि नोपसज्जेत स्‍त्रीषु स्‍त्रैणेषु चार्थवित् ।
विषयेन्द्रियसंयोगान्मन: क्षुभ्यति नान्यथा ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  यदि सैद्धांतिक रूप से शरीर की वास्तविक प्रकृति को समझते हुए भी स्त्रियों या स्त्रियों में आसक्त रहने वाले पुरुषों की संगति करनी है तो कभी नहीं करनी चाहिए। अंततः इंद्रियों का उनकी इच्छाओं से संपर्क अनिवार्य रूप से मन को विचलित करता है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.