श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 26: ऐल-गीत  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  11.26.2 
 
 
गुणमय्या जीवयोन्या विमुक्तो ज्ञाननिष्ठया ।
गुणेषु मायामात्रेषु द‍ृश्यमानेष्ववस्तुत: ।
वर्तमानोऽपि न पुमान् युज्यतेऽवस्तुभिर्गुणै: ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  प्रकृति के गुणों और उनके फलों से अपनी झूठी पहचान छोड़कर दिव्य ज्ञान में स्थिर व्यक्ति संसार के बंधनों से मुक्त हो जाता है। वह इन फलों को मात्र भ्रम समझता है और इनके बीच रहकर भी इनसे नहीं उलझता। चूँकि प्रकृति के गुण और उनके फल वास्तविक नहीं होते, इसलिए वह उन्हें स्वीकार नहीं करता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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