मदर्पणं निष्फलं वा सात्त्विकं निजकर्म तत् ।
राजसं फलसङ्कल्पं हिंसाप्रायादि तामसम् ॥ २३ ॥
अनुवाद
मेरे लिए समर्पित कर्म, जिसके फल पर विचार न किया जाए, उसे सत्वगुण में माना जाता है। परिणामों का आनंद लेने की इच्छा से किया गया कर्म रजोगुण में है। हिंसा और ईर्ष्या से प्रेरित कर्म तमोगुण में होता है।