श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 24: सांख्य दर्शन  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  11.24.21 
 
 
विराण्मयासाद्यमानो लोककल्पविकल्पकः ।
पञ्चत्वाय विशेषाय कल्पते भुवनैः सह ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं सृष्टि का आधार हूँ, जो ग्रहों के निर्माण, पालन और विनाश द्वारा अनंत विविधता को प्रदर्शित करता हूँ। मेरे सृष्टि-रूप में, सभी ग्रह अपनी निद्रित अवस्था में रहते हैं, और यह सृष्टि-रूप पाँच तत्वों के सामंजस्यपूर्ण संयोजन से विभिन्न प्रकार की दुनियाओं को प्रकट करता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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