अणुर्बृहत् कृशः स्थूलो यो यो भावः प्रसिध्यति ।
सर्वोऽप्युभयसंयुक्तः प्रकृत्या पुरुषेण च ॥ १६ ॥
अनुवाद
इस जगत में जो भी स्वरूप दिखाई देते हैं, चाहे वे छोटे हों या बड़े, हल्के हों या वज़नदार, उनमें भौतिक प्रकृति और इसका भोग करने वाला आत्मा दोनों ज़रूर होते हैं।