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अध्याय 23: अवन्ती ब्राह्मण का गीत
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श्लोक 31
श्लोक
11.23.31
श्रीभगवानुवाच
इत्यभिप्रेत्य मनसा ह्यावन्त्यो द्विजसत्तम: ।
उन्मुच्य हृदयग्रन्थीन् शान्तो भिक्षुरभून्मुनि: ॥ ३१ ॥
अनुवाद
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भगवान् श्रीकृष्ण ने आगे कहा : उस दृढ़ संकल्पवान श्रेष्ठ अवंती ब्राह्मण ने अपने हृदय में स्थित इच्छाओं की गाँठों को खोलने में सफलता प्राप्त कर ली और एक शांत व मौन संन्यासी साधु का वेश धारण कर लिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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