श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 23: अवन्ती ब्राह्मण का गीत  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  11.23.31 
 
 
श्रीभगवानुवाच
इत्यभिप्रेत्य मनसा ह्यावन्त्यो द्विजसत्तम: ।
उन्मुच्य हृदयग्रन्थीन् शान्तो भिक्षुरभून्मुनि: ॥ ३१ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान् श्रीकृष्ण ने आगे कहा : उस दृढ़ संकल्पवान श्रेष्ठ अवंती ब्राह्मण ने अपने हृदय में स्थित इच्छाओं की गाँठों को खोलने में सफलता प्राप्त कर ली और एक शांत व मौन संन्यासी साधु का वेश धारण कर लिया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.