न तथा तप्यते विद्ध: पुमान् बाणैस्तु मर्मगै: ।
यथा तुदन्ति मर्मस्था ह्यसतां परुषेषव: ॥ ३ ॥
अनुवाद
जो तीखे-तीखे बाण सीधे हृदय को बेध कर पार चले जाते हैं, वे उतने कष्ट नहीं पहुंचाते जितने की असभ्य पुरुषों द्वारा बोले जाने वाले, कटु व अपमानजनक शब्दरूपी तीर पहुंचाते हैं जो कि हृदय के बहुत अंतिम सिरे तक धंस कर नुकीले कांटे की तरह चुभते रहते हैं।