श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 23: अवन्ती ब्राह्मण का गीत  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  11.23.3 
 
 
न तथा तप्यते विद्ध: पुमान् बाणैस्तु मर्मगै: ।
यथा तुदन्ति मर्मस्था ह्यसतां परुषेषव: ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  जो तीखे-तीखे बाण सीधे हृदय को बेध कर पार चले जाते हैं, वे उतने कष्ट नहीं पहुंचाते जितने की असभ्य पुरुषों द्वारा बोले जाने वाले, कटु व अपमानजनक शब्दरूपी तीर पहुंचाते हैं जो कि हृदय के बहुत अंतिम सिरे तक धंस कर नुकीले कांटे की तरह चुभते रहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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