नूनं मे भगवांस्तुष्ट: सर्वदेवमयो हरि: ।
येन नीतो दशामेतां निर्वेदश्चात्मन: प्लव: ॥ २८ ॥
अनुवाद
सब देवताओं के स्वामी श्री हरि मुझसे प्रसन्न हैं। उन्होंने ही मुझे इस कष्टमय स्थिति में लाया है और वैराग्य का अनुभव करवाया है। यह वैराग्य ही उस नाव के समान है जो मुझे इस भवसागर से पार लगा सकती है।