श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 23: अवन्ती ब्राह्मण का गीत  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  11.23.21 
 
 
अर्थेनाल्पीयसा ह्येते संरब्धा दीप्तमन्यव: ।
त्यजन्त्याशु स्पृधो घ्नन्ति सहसोत्सृज्य सौहृदम् ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  थोड़े-से भी धन के लिए ये सम्बन्धी तथा मित्रगण अति उत्तेजित हो जाते हैं और गुस्से से भड़क उठते हैं। प्रतिद्वंद्वी बनकर वे तुरंत सभी शुभकामनाओं को त्याग देते हैं और एक पल में उसका त्याग करके उसकी हत्या तक कर देते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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