श्रीभगवानुवाच
बार्हस्पत्य स नास्त्यत्र साधुर्वै दुर्जनेरितै: ।
दुरक्तैर्भिन्नमात्मानं य: समाधातुमीश्वर: ॥ २ ॥
अनुवाद
श्री कृष्ण बोले : हे बृहस्पति के शिष्य, इस संसार में कोई भी साधु ऐसा नहीं है जो असभ्य लोगों के अपमानजनक शब्दों से विचलित हुए अपने मन को दोबारा स्थिर कर सके।