श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 23: अवन्ती ब्राह्मण का गीत  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  11.23.2 
 
 
श्रीभगवानुवाच
बार्हस्पत्य स नास्त्यत्र साधुर्वै दुर्जनेरितै: ।
दुरक्तैर्भिन्नमात्मानं य: समाधातुमीश्वर: ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री कृष्ण बोले : हे बृहस्पति के शिष्य, इस संसार में कोई भी साधु ऐसा नहीं है जो असभ्य लोगों के अपमानजनक शब्दों से विचलित हुए अपने मन को दोबारा स्थिर कर सके।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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