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श्लोक 56
श्लोक
11.22.56
अर्थे ह्यविद्यमानेऽपि संसृतिर्न निवर्तते ।
ध्यायतो विषयानस्य स्वप्नेऽनर्थागमो यथा ॥ ५६ ॥
अनुवाद
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कामवासना में लिप्त रहने वाला व्यक्ति भौतिक जीवन को वास्तविक न होते हुए भी नहीं त्याग सकता, ठीक वैसे ही जैसे सपने में आने वाले अप्रिय अनुभव दूर नहीं जा पाते।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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