श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 22: भौतिक सृष्टि के तत्त्वों की गणना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  11.22.5 
 
 
नैतदेवं यथात्थ त्वं यदहं वच्मि तत्तथा ।
एवं विवदतां हेतुं शक्तयो मे दुरत्यया: ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  जब दार्शनिक ये कहते हैं कि "मैं इस विशेष प्रसंग का उसी तरह से विश्लेषण करना नहीं चाहता जैसे तुम चाहते हो," तब मैं समझता हूँ कि मेरी अपनी प्रेरणाएँ ही उनकी विश्लेषणात्मक असहमति को जन्म दे रही हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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