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श्लोक 27
श्लोक
11.22.27
एवं मे पुण्डरीकाक्ष महान्तं संशयं हृदि ।
छेत्तुमर्हसि सर्वज्ञ वचोभिर्नयनैपुणै: ॥ २७ ॥
अनुवाद
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हे कमलनयन कृष्ण, हे सर्वज्ञ, आप कृपया अपने उन वाक्यों से मेरे हृदय के इस बड़े संकट को दूर कीजिए जो आपके श्रेष्ठ विवेक कौशल के दर्शक हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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