श्रीउद्धव उवाच
प्रकृति: पुरुषश्चोभौ यद्यप्यात्मविलक्षणौ ।
अन्योन्यापाश्रयात् कृष्ण दृश्यते न भिदा तयो: ।
प्रकृतौ लक्ष्यते ह्यात्मा प्रकृतिश्च तथात्मनि ॥ २६ ॥
अनुवाद
श्री उद्धव ने पूछा: हे कृष्ण! प्रकृति और जीव स्वाभाविक रूप से अलग हैं। लेकिन, उनके बीच कोई भेद दिखाई नहीं देता। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे एक-दूसरे के अंदर रहते हैं। इसीलिए, आत्मा प्रकृति के अंदर और प्रकृति आत्मा के अंदर दिखाई देती है।