सत्त्वं ज्ञानं रज: कर्म तमोऽज्ञानमिहोच्यते ।
गुणव्यतिकर: काल: स्वभाव: सूत्रमेव च ॥ १३ ॥
अनुवाद
इस संसार में सतोगुण को ज्ञान, रजोगुण को काम के लिए कर्म करने की इच्छा और तमोगुण को अज्ञानता माना जाता है। समय को भौतिक गुणों की अशांत अंतःक्रिया के रूप में देखा जाता है और सभी कार्य करने की प्रवृत्ति आदि सूत्र या महत्-तत्व से होती है।