श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 21: भगवान् कृष्ण द्वारा वैदिक पथ की व्याख्या  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  11.21.36 
 
 
शब्दब्रह्म सुदुर्बोधं प्राणेन्द्रियमनोमयम् ।
अनन्तपारं गम्भीरं दुर्विगाह्यं समुद्रवत् ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  वेदों का परा ध्वनि को समझ पाना अत्यंत कठिन है और वह प्राण, इंद्रियों और मन के अंदर विभिन्न स्तरों पर अभिव्यक्त होता है। यह वैदिक ध्वनि समुद्र के समान अपार, अगाध और अथाह है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.