श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 21: भगवान् कृष्ण द्वारा वैदिक पथ की व्याख्या  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  11.21.31 
 
 
स्वप्नोपमममुं लोकमसन्तं श्रवणप्रियम् ।
आशिषो हृदि सङ्कल्प्य त्यजन्त्यर्थान् यथा वणिक् ॥ ३१ ॥
 
अनुवाद
 
  जैसे कोई बुद्धिहीन व्यापारी व्यर्थ के कारोबारी ख्यालों में अपनी असली दौलत गँवा देता है, उसी तरह मूर्ख लोग ज़िन्दगी में सचमुच मूल्यवान चीज़ों को त्यागकर स्वर्ग जाने के पीछे पड़े रहते हैं, जो सुनने में अच्छा तो लगता है, लेकिन सपने की तरह असत्य होता है। ऐसे मोहित लोग अपने दिलों में ये ख्याल करते हैं कि उन्हें सारी भौतिक वरदान प्राप्त हो जाएँगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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