श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 21: भगवान् कृष्ण द्वारा वैदिक पथ की व्याख्या  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  11.21.27 
 
 
कामिन: कृपणा लुब्धा: पुष्पेषु फलबुद्धय: ।
अग्निमुग्धा धूमतान्ता: स्वं लोकं न विदन्ति ते ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  काम, क्रोध और लालच से भरे लोग जीवन में सिर्फ फूलों को ही वास्तविक फल मानकर भटकते रहते हैं। अग्नि की चमक से प्रभावित होकर और उसके धुएं से घुटकर, वे अपनी वास्तविक पहचान नहीं समझ पाते।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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