कामिन: कृपणा लुब्धा: पुष्पेषु फलबुद्धय: ।
अग्निमुग्धा धूमतान्ता: स्वं लोकं न विदन्ति ते ॥ २७ ॥
अनुवाद
काम, क्रोध और लालच से भरे लोग जीवन में सिर्फ फूलों को ही वास्तविक फल मानकर भटकते रहते हैं। अग्नि की चमक से प्रभावित होकर और उसके धुएं से घुटकर, वे अपनी वास्तविक पहचान नहीं समझ पाते।