श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 21: भगवान् कृष्ण द्वारा वैदिक पथ की व्याख्या  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  11.21.26 
 
 
एवं व्यवसितं केचिदविज्ञाय कुबुद्धय: ।
फलश्रुतिं कुसुमितां न वेदज्ञा वदन्ति हि ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  विकृत बुद्धि वाले लोग वैदिक ज्ञान के वास्तविक उद्देश्य को समझ नहीं पाते और फलस्वरूप, वेदों के अलंकारमय बयानों को परम वैदिक सत्य कहते हैं। ये कथन भौतिक पुरस्कारों का वादा करते हैं, लेकिन वेदों के सच्चे जानकार कभी भी इस तरह की बातें नहीं करते।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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