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अध्याय 21: भगवान् कृष्ण द्वारा वैदिक पथ की व्याख्या
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श्लोक 16
श्लोक
11.21.16
क्वचिद् गुणोऽपि दोष: स्याद् दोषोऽपि विधिना गुण: ।
गुणदोषार्थनियमस्तद्भिदामेव बाधते ॥ १६ ॥
अनुवाद
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कभी धर्म पाप बन जाता है और कभी वैदिक आदेशों के कारण पाप धर्म बन जाता है। ऐसे विशेष नियमों से धर्म और पाप के बीच का अंतर मिट जाता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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