श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 21: भगवान् कृष्ण द्वारा वैदिक पथ की व्याख्या  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  11.21.15 
 
 
मन्त्रस्य च परिज्ञानं कर्मशुद्धिर्मदर्पणम् ।
धर्म: सम्पद्यते षड्‌भिरधर्मस्तु विपर्यय: ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  जब किसी मंत्र का सही उच्चारण किया जाता है तो वह शुद्ध होता है और जब कोई कर्म मेरे समर्पण के उद्देश्य से किया जाता है तो वह शुद्ध माना जाता है। यह ध्यान देने योग्य है कि स्थान, समय, पदार्थ, कर्ता, मंत्र और कर्म की शुद्धि से मनुष्य धार्मिक बनता है और इन छहों की उपेक्षा करने से व्यक्ति को अधार्मिक माना जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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