श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 20: शुद्ध भक्ति ज्ञान एवं वैराग्य से आगे निकल जाती है  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  11.20.8 
 
 
यद‍ृच्छया मत्कथादौ जातश्रद्धस्तु य: पुमान् ।
न निर्विण्णो नातिसक्तो भक्तियोगोऽस्य सिद्धिद: ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  यदि किसी को सौभाग्यवश मेरी महिमा को सुनने और जपने में आस्था प्रकट हो जाए तो उस व्यक्ति को, जो भौतिक जीवन से अत्यधिक ऊबा हुआ नहीं होता या बहुत अधिक आसक्त नहीं होता, उसे मेरे प्रति प्रेममय भक्ति के मार्ग से पूर्णता प्राप्त करनी चाहिए।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.