गुणदोषभिदादृष्टिर्निगमात्ते न हि स्वत: ।
निगमेनापवादश्च भिदाया इति ह भ्रम: ॥ ५ ॥
अनुवाद
हे प्रभु, पाप और पुण्य में जो भेद दिखाई देता है, वह आपके वैदिक ज्ञान से ही उत्पन्न होता है और अपने आप नहीं होता। अगर वही वैदिक वाङ्मय बाद में पाप और पुण्य के इस भेद को खत्म कर दे, तो निश्चित रूप से भ्रम पैदा होगा।