श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 20: शुद्ध भक्ति ज्ञान एवं वैराग्य से आगे निकल जाती है  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  11.20.34 
 
 
न किञ्चित् साधवो धीरा भक्ता ह्येकान्तिनो मम ।
वाञ्छन्त्यपि मया दत्तं कैवल्यमपुनर्भवम् ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  चूंकि मेरे भक्तगण साधु आचरण के और गंभीर बुद्धि वाले होते हैं, इसलिए वे स्वयं को पूर्णतः मेरे प्रति समर्पित कर देते हैं और मेरे अतिरिक्त कुछ भी नहीं चाहते। वस्तुत: मैं उन्हें जन्म-मृत्यु से मुक्ति भी अर्पित कर दूँ तो भी वे उसे स्वीकार नहीं करते।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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