श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 20: शुद्ध भक्ति ज्ञान एवं वैराग्य से आगे निकल जाती है  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  11.20.30 
 
 
भिद्यते हृदयग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्वसंशया: ।
क्षीयन्ते चास्य कर्माणि मयि द‍ृष्टेऽखिलात्मनि ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  जब मुझे भगवान् के रूप में पहचाना जाता है, तो जीव के हृदय की ग्रंथि से बंधन मुक्त होता है, सभी संशय खत्म हो जाते हैं तथा कामनाओं से प्रेरित कर्मों की श्रृंखला समाप्त हो जाती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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