श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 20: शुद्ध भक्ति ज्ञान एवं वैराग्य से आगे निकल जाती है  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  11.20.21 
 
 
एष वै परमो योगो मनस: सङ्ग्रह: स्मृत: ।
हृदयज्ञत्वमन्विच्छन् दम्यस्येवार्वतो मुहु: ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  कुशल सवार, एक आवेगी घोड़े को वश में करने की इच्छा से, उसे कुछ समय उसके मनमुताबिक चलने देता है और फिर लगाम खींचकर उसे धीरे-धीरे अपनी इच्छित राह पर ले आता है। इसी प्रकार परम योग पद्धति वह है, जिससे व्यक्ति मन की गतिविधियों और इच्छाओं का सावधानी से अवलोकन करता है और धीरे-धीरे उन्हें पूर्ण नियंत्रण में ले लेता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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