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अध्याय 20: शुद्ध भक्ति ज्ञान एवं वैराग्य से आगे निकल जाती है
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श्लोक 16
श्लोक
11.20.16
अहोरात्रैश्छिद्यमानं बुद्ध्वायुर्भयवेपथु: ।
मुक्तसङ्ग: परं बुद्ध्वा निरीह उपशाम्यति ॥ १६ ॥
अनुवाद
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यह जानते हुए कि दिन-रात बीतने के साथ मेरी आयु कम हो रही है, मनुष्य को भय से काँपना चाहिए। इस प्रकार सारी भौतिक आसक्ति और इच्छा का त्याग करते हुए, वह भगवान् को समझने लगता है और परम शांति प्राप्त करता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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