यथा विचित्रव्यसनाद् भवद्भिर्विश्वतोभयात् ।
मुच्येम ह्यञ्जसैवाद्धा तथा न: शाधि सुव्रत ॥ ९ ॥
अनुवाद
हे प्रभु, आप सदैव अपने व्रत पर अडिग रहते हैं। कृपा करके मुझे स्पष्ट निर्देश दें, जिससे आपकी कृपा से मैं इस संसार से आसानी से मुक्त हो सकूँ, जो अनेक संकटों से भरा हुआ है और हमें सदा भयभीत रखता है।