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श्रीमद् भागवतम
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अध्याय 2: नौ योगेन्द्रों से महाराज निमि की भेंट
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श्लोक 43
श्लोक
11.2.43
इत्यच्युताङ्घ्रि भजतोऽनुवृत्त्या
भक्तिर्विरक्तिर्भगवत्प्रबोध: ।
भवन्ति वै भागवतस्य राजं-
स्तत: परां शान्तिमुपैति साक्षात् ॥ ४३ ॥
अनुवाद
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हे राजन्, भगवान के अचूक चरणकमलों का सतत प्रयासों से पूजन करने वाला भक्त अडिग भक्ति, वैराग्य तथा भगवान का अनुभवात्मक ज्ञान प्राप्त करता है। इस प्रकार सफल भक्त को परम आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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