भक्त को किसी भी चीज़ को भगवान श्री कृष्ण से अलग नही देखना चाहिए। आकाश, आग, हवा, पानी, मिट्टी, सूरज तथा दूसरे तारे, सभी जीव, दिशाएँ, पेड़ और दूसरे पौधे, नदियाँ और सागर—जैसा भी भक्त अनुभव करता है उसे कृष्ण का विस्तार मानना चाहिए। इस प्रकार से सृष्टि के भीतर के सभी चीजों को भगवान हरि के शरीर के रूप में देखते हुए भक्त को भगवान के शरीर के संपूर्ण विस्तार को नमस्कार करना चाहिए।