श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 2: नौ योगेन्द्रों से महाराज निमि की भेंट  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  11.2.4 
 
 
श्रीवसुदेव उवाच
भगवन् भवतो यात्रा स्वस्तये सर्वदेहिनाम् ।
कृपणानां यथा पित्रोरुत्तमश्लोकवर्त्मनाम् ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री वासुदेव ने कहा : हे प्रभु, पिता के आगमन के समान आपका आगमन समस्त प्राणियों के कल्याण हेतु है। इस लोक में विशेष रूप से आप अति कष्ट में जीने वालों और साथ ही उन लोगों की सहायता करते हैं जो उत्तमश्लोक परमेश्वर की राह पर चल रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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