श्रीवसुदेव उवाच
भगवन् भवतो यात्रा स्वस्तये सर्वदेहिनाम् ।
कृपणानां यथा पित्रोरुत्तमश्लोकवर्त्मनाम् ॥ ४ ॥
अनुवाद
श्री वासुदेव ने कहा : हे प्रभु, पिता के आगमन के समान आपका आगमन समस्त प्राणियों के कल्याण हेतु है। इस लोक में विशेष रूप से आप अति कष्ट में जीने वालों और साथ ही उन लोगों की सहायता करते हैं जो उत्तमश्लोक परमेश्वर की राह पर चल रहे हैं।