श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 2: नौ योगेन्द्रों से महाराज निमि की भेंट  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  11.2.36 
 
 
कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा
बुद्ध्यात्मना वानुसृतस्वभावात् ।
करोति यद् यत् सकलं परस्मै
नारायणायेति समर्पयेत्तत् ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  बद्ध जीवन में अर्जित विशेष स्वभाव के अनुकूल, मनुष्य अपने शरीर, शब्दों, मन, इन्द्रियों, बुद्धि या शुद्ध चेतना से कोई भी कार्य करे, तो उसे यह सोचकर परमात्मा को समर्पित करना चाहिए कि यह भगवान् नारायण को खुश करने के लिए है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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