यानास्थाय नरो राजन् न प्रमाद्येत कर्हिचित् ।
धावन् निमील्य वा नेत्रे न स्खलेन्न पतेदिह ॥ ३५ ॥
अनुवाद
हे राजन, जो मनुष्य भगवान के प्रति भक्ति योग को अपना लेता है वह इस दुनिया में कभी भी राह भटक कर गलत रास्ते पर नहीं जाएगा। भले ही वह आँखें बंद करके दौड़ता जाए, तब भी वह कभी ठोकर नहीं खायेगा और न ही गिरने का भय रहेगा।