श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 2: नौ योगेन्द्रों से महाराज निमि की भेंट  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  11.2.33 
 
 
श्रीकविरुवाच
मन्येऽकुतश्चिद्भयमच्युतस्य
पादाम्बुजोपासनमत्र नित्यम् ।
उद्विग्नबुद्धेरसदात्मभावाद्
विश्वात्मना यत्र निवर्तते भी: ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री कवि ने कहा: मैं मानता हूँ कि जो व्यक्ति अपनी बुद्धि से भौतिक और क्षणभंगुर दुनिया को अपना स्वरूप समझता है, वह निरंतर भय में रहता है। ऐसे व्यक्ति को भय से मुक्ति पाने के लिए अच्युत भगवान के चरणकमलों की पूजा करनी चाहिए। इस भक्ति में सारा भय दूर हो जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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