श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 2: नौ योगेन्द्रों से महाराज निमि की भेंट  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  11.2.25 
 
 
तान् द‍ृष्ट्वा सूर्यसङ्काशान् महाभागवतान् नृप ।
यजमानोऽग्नयो विप्रा: सर्व एवोपतस्थिरे ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन, सूर्य के तेज की बराबरी करने वाले उन भगवान के भक्तों को देखकर वहाँ उपस्थित सभी लोग - यज्ञ कराने वाले, ब्राह्मण और यज्ञ की अग्नियाँ भी - सम्मान से खड़े हो गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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