स भुक्तभोगां त्यक्त्वेमां निर्गतस्तपसा हरिम् ।
उपासीनस्तत्पदवीं लेभे वै जन्मभिस्त्रिभि: ॥ १८ ॥
अनुवाद
राजा भरत ने इस संसार को सभी प्रकार के भौतिक आनंद को क्षणिक और बेकार मानते हुए त्याग दिया। उन्होंने अपनी सुंदर युवा पत्नी और परिवार को छोड़कर कठोर तपस्या की और तीन जन्मों के बाद भगवान के धाम में स्थान प्राप्त किया।