तपस्तीर्थं जपो दानं पवित्राणीतराणि च ।
नालं कुर्वन्ति तां सिद्धिं या ज्ञानकलया कृता ॥ ४ ॥
अनुवाद
आध्यात्मिक ज्ञान के एक छोटे-से अंश से ही जो सिद्धि प्राप्त होती है, वह तपस्या करने, तीर्थस्थानों की यात्रा करने, मौन प्रार्थना करने, दान देने या अन्य धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने से प्राप्त नहीं हो सकती।