श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 19: आध्यात्मिक ज्ञान की सिद्धि  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  11.19.3 
 
 
ज्ञानविज्ञानसंसिद्धा: पदं श्रेष्ठं विदुर्मम ।
ज्ञानी प्रियतमोऽतो मे ज्ञानेनासौ बिभर्ति माम् ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  जिन लोगों ने दार्शनिक और साधित ज्ञान के माध्यम से पूर्णता प्राप्त कर ली है, वे मेरे चरण-कमलों को सर्वोच्च दिव्य वस्तु के रूप में पहचानते हैं। इस प्रकार के विद्वान योगी मेरे लिए अति प्रिय होते हैं और अपने पूर्ण ज्ञान के साथ वे मुझे आनंदमय स्थिति में रखते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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